Anju Dixit

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सही मायने में जीवनसाथी

कम उम्र में ही स्वाति की शादी हो गयी थी। कितनी इच्छाएं मन  मे ही सिमटकर रह गयी। वह आगे पढ़ना चाहती थी पढ़ने में भी ठीक थी पर
सबने हाथ खड़े कर दिए ग्रेजुएट हो गयी काफी है अब पढ़ना अपने घर यानि ससुराल में जाकर ,
उसको समझ ही न आया अपना घर जब यह न हुआ जहाँ जन्म लिया  पली बड़ी  फिर वो अनजान जगह कैसे हो जाएगी, जब आप ही न समझे मेरी मन की इच्छाओं को फिर वो क्या समझेंगे ,क्या करती  पापा बाहर  नौकरी करते थे तो माँ अकेली थी किस किसको पढ़ाती फिर लड़कियाँ कहाँ जाएं किसके साथ जाएं सबसे बिकट समस्या यही थी सो  ग्रेजुएट के बाद दी कि शादी कर दी अब उसकी भी विदाई हो गयी मायके से।
ससुराल में काफी भरापूरा था ।सास,ससुर,देवर,जेठ,नन्द,  काफी सारा काम  , इन सबके बीच शादी को सात साल हो गए ,वो दो बच्चों की माँ भी बन गयी ।
बस एक बात से मन प्रसन्न था पतिदेव बहुत अच्छे थे जो हमेशा उसका ख्याल रखते थे , उसकी पसंद नापसन्द का भी उन्हें ख्याल था।
यह बात ससुराल के अन्य लोगों के गले न उतरती थी ,पर कर भी क्या सकते थे  बातें बनाकर रह जाते।
स्वाति अक्सर बुरा मान जाती अपने पति पारस से कहती तो वह कहता,
तुम  क्यों दिमाग खपाती हो जब मुझपर कोई असर नहीं कहने दो जो कोई कुछ कहता है मुझपर भरोसा रखो न तुम तुम्हारा हाथ थामकर फेरे डालकर मै लाया तुम मेरी जिम्मेदारी हो न कि जमाने की ,और मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभाउंगा ,
तभी स्वाति भावुक हो जाती आप कभी न बदलना,
पारस भी प्यार से उसके हाथों में हाथ थामकर हामी भर देता इस जन्म नही बदलूंगा।
एक दिन पारस एक एडमिशन फार्म पर स्वाति के साइन कराए सारे घर मे शोर मच गया अरे अब पड़ेगी यह दो बच्चों की माँ होकर बच्चों को पढ़ाओ,
इस तरह का हंगामा देख स्वाति ने रात को पारस से बोल दिया मुझे नही पढ़ना रहने दो फिर मै तो कभी कुछ कहा नही फिर आप क्यों यह b.e.d ki   फार्म ले आये।
स्वाति किसी के कुछ कहने की परवाह न करो मै हूँ न तुम्हारे साथ।
स्वाति की एक भी बात पारस  ने न मानी आखिर स्वाति ने साइन कर दिए।
अब उसे कॉलिज जाने का दिन आया सभी मुँह बिसूरने लगे  बच्चों को कौन रखेगा ,
पारस ने कहा दिया किसी को परेशान होने की जरूरत नही  मैने अपनी जिम्मेदारी पर एडमिशन करवाया  है तो मै सब देख लुंगा।
स्वाति कॉलिज जाती पारस बच्चों को स्कूल भेजता फिर ऑफिस  जाता।
कुछ मुश्किल के साथ स्वाति  बीएड पूरा हो गया आज जब  रिजल्ट आया तो सभी अचंभित थे स्वाति के 98% आए थे पारस तो फूले नहीं समा रहा था स्वाति से ज्यादा खुश पारस था ऐसा लगता था मानो उसी  ने बीएड की डिग्री पाली थी सबको मिठाई खिला रहा था अपने हाथों से।
उसे देखकर स्वाति की आंखें भर गई जब उसने स्वाति को मिठाई खिलाते हुए कहा अब तुम एक शिक्षिका बनने के योग्य हो ।
अब स्वाति ने लेक्चरर के लिए एप्लाई किया दूसरी बार मे  उसका सिलेक्शन हो गया  आज पारस  के पैर जमीन पर न थे।यह देख कर स्वाति ने पारस को अपने गले लगा लिया ।
यह सब तो आपकी मेहनत विश्वास का ही नतीजा है बरना मैं तो यह सब आस छोड़ ही चुकी थी।
पर यह बताओ आपको कैसे पता चला कि मेरे मन में पढ़ने की इच्छा थी।
पारस ने कहा 1 दिन में कोई फाइल ढूंढ रहा था मेरे हाथ तुम्हारी पुरानी डायरी लग गई मैं अक्सर उसे पढ़ता था वैसे यह गलत काम है किसी की डायरी नहीं पड़नी चाहिए पर मेरा मन नहीं मानता था एक दिन एक पन्ने पर लिखे तुम्हारे चंद शब्दों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था। उस पन्ने पर तुमने लिखा था ,
कितना अच्छा होता मैं भी कुछ कर पाती ,
कितना अच्छा होता मैं भी कुछ बन पाती ,
काश मेरी मन की इच्छाएं यू सिमट कर रह जाती ,
काश मैं भी कुछ बन पाती ।
फिर आगे तुमने अपनी इच्छा लिखी थी कि तुम भी टीचर बनना चाहती थी बच्चों को पढ़ाना चाहती थी।
सम्मान के साथ ही जीवन जीना चाहती थी, तुमने अपने सपने के बारे में लिखा था।
बस यही से मुझे रहा मिल गई तुम्हारे उस सपने को हकीकत के आसमान में उड़ान देने की उसी दिन मैंने ठान लिया जब तुम हमारी इच्छाओं के लिए इतना त्याग कर सकती हो तो क्या हम पुरुषों का दायित्व नहीं बनता स्त्रियों की इच्छाओं का मान सम्मान करें उनके सपनों को साकार करें उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करें उन्हें जीवन में जीने के लिए आगे बढ़े ।
बस वहीं से मैंने ठान लिया कि तुम्हारे सपनों की उड़ान को मुझे हकीकत के आसमान में उड़ाना है और जो तुमने कहा है तुम्हें वही बनाना है।
यह सब सुनकर स्वाति ने कहा तुम्हारा साथ मुझे इस जन्म नहीं हर जन्म में चाहिए।
पारस ने कहा ठीक है मैं तुम्हारा इस जन्म का नहीं जन्म जन्म का साथी हूं मेरी जीवनसंगिनी।
स्वाति ने भी कहा हां मैं बनूंगी सात जन्म तक या हर जन्म तक रहूंगी तुम्हारे जीवन जीवनसंगिनी तुम जैसा हमसफ़र हो तो जीवन में बड़े से बड़ा संघर्ष भी हर स्त्री पार कर लेगी लोग यह बात कहते हैं हर कामयाब पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है पर मुझे यह बात कहने में कोई भी संकोच नहीं कि मेरी कामयाबी के पीछे एक पुरुष का हाथ है वह पुरुष है मेरा हमसफ़र पारस।
स्वाति बोली पारस शादी तो सभी करते हैं साथ भी रहते पर सही मायने में सच्चे जीवन साथी वो ही होते हैं जो एक दूसरे की इच्छाओं का मान सम्मान करते हैं,
और आप हो मेरे वो सच्चे जीवन साथी।


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5 Comments

Fiza Tanvi

17-Sep-2021 08:51 PM

Good

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Gunjan Kamal

17-Sep-2021 03:05 PM

बिल्कुल सही परिभाषा सच्चे जीवनसाथी की । शानदार कहानी 👏🙏🏻

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Shalini Sharma

17-Sep-2021 02:54 PM

सच में इसे ही कहते हैं सच्चा जीवन साथी

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